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नारी के सम्मान का ढ़ोंग क्यों ?

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     पुरुष का पर्याय विधाता की उस जीवित सरंचना से है - जिसे प्रलयकाल में भी रूप और सौंदर्य का मनोरम साथ चाहिए ;वही नारी का सम्बंध उस समर्पण रूपी श्रम-शिला से है जिसे वेदना और असहनीय दर्द में भी बस आँखों में भाव और होंठों पे प्रेम के चंद शब्द लिए एक हमदर्द चाहिए ना कि अपने शौर्य और पराक्रम का प्रतीक मात्र एक हवसी प्रतिमा :-मर्द । वैसे तो नारी को नारायणी ,श्रद्धा ,देवी ,शक्ति ,सृष्टि ,वसुंधरा , कल्याणी इत्यादि नाना प्रकार की उपमा और अलंकरण से सम्बोधित किया जाता रहा है । परंतु इस पुरुष प्रधान समाज में यह महज विरोधाभास ही है । क्योंकि वास्तविकता तो यही है कि जो नारी चारदीवारी में कैद है वो शोषित और जिसके कदम उन्मुक्त गगन के तले पड़े वो चरित्रहीन । प्रश्न पूछता पुरुष श्रद्धा से हे नारी मेरा पथ क्या है ? छोड़ उसी को बीच सफर में भटका ,इससे ज्यादा फिर भ्रष्ट क्या है ? हुआ दुर्बल और लाचार विवश पुनः तब आँचल माँगे ,हक क्या है ? नारी ही बेचारी फिर भी पुरुषों तेरा मत क्या है ? 🌱SwAsh 🌱 ✍️shabdon✍️ke✍️ashish✍️