ये महज रिवाज है ,विवाह नहीं !


पद और हैसियत देखकर अपनी औकाद के हिसाब से एक सौदा होता है ,जिस रिश्ते को हमारे समाज में विवाह कहते है । फिर इस रिश्ते से उम्मीद भी रखते है । लानत है ,ऐसे रिवाज पर ;जी हाँ लानत है ऐसे समाज पर ।

देखा है मैंने हमें कुछ नहीं चाहिए कहने वालों को भी सबकुछ चाहिए होता है । अजीब विडंबना है ना लड़के का भाव लगाया जाता है और बेटी का बाँप अपनी अनमोल सम्पति जिसके लालन-पालन में कोई कसर नहीं छोड़ी कभी ,उस अद्वितीय धरोहर को मुस्कुराते हुए सौंप देता है किसी और की चारदीवारी में चौखट के उस ओर मजबूर बुलबुल की तरह और फिर भी अदब से झुक कर पूछता है :- और क्या लेंगे आप ?कोई कमी तो नहीं । सब ठीक है ना । अपने बेटे की शादी को अवसर समझ कर अपना घर भरने वाले भूखे भेड़िये पूरा कोना निहार कर एक लंबी डकार मार कर कहते है मुझे क्या देंगें आप सब आपकी बेटी और दामाद का है । और यही होता आ रहा है सदियों से ।

कहते है विवाह दो परिवारों का मिलन है ,दो संस्कारों का संगम है । कदापि नहीं जिस रिश्ते की बुनियाद ही सौदेबाजी से शुरू हुई वो कभी संस्कारों का संगम हो ही नहीं सकता । जिसके घर में बेटियाँ है वो पिता लाचार है ये कैसा संस्कार है । और तो और बेटी चाहे कितनी भी होनहार क्यों ना हो उसको ये एहसास बार-बार दिलाया जाता है कि उसका रिश्ता उसके पिता के सामर्थ्य के हिसाब से ही तय होगा । शायद ये कड़वा है पर सच है ।

अपनी सारी जमापूँजी को अपनी बेटियों की संख्या से विभाजित कर माँ-बाँप अपना कर्ज अदा करते है । और जो कल तक राजकुमारी थी वो इतना सबकुछ देकर भी किसी और के घर में जाकर चाकरी करती है । कोई नाराज ना हो जाये , ऊँची आवाज ना हो जाये , ये लाज और लिहाज ना खो जाए । इसी उधेड़बुन में कब वो लड़की से औरत बन जाती है ये तो बस वक़्त ही जाने ।

उम्र छोटी हो फिर भी सर पे परिवार की साख और इज्जत का बोझ उठाये वो घूँघट में घुटन सजाये किसी अनजान व पराये के साथ अपने सारे अरमानों को सीने में दफन कर एक मुश्किल सफर पर अकेली निकल पड़ती है जहाँ कहने को तो कई अपने होते है मगर हकीकत में साथ तो बस वो हालात और चंद सपनें होते है ।

हाथ थामों किसी का आखिरी साँस तक मगर किसी सौदे या व्यापार का भागीदार बनकर नहीं बल्कि स्वेच्छा से ,भावना से ,प्यार से । किसी की मजबूरी को रिश्ते का नाम देना विवाह नहीं निर्वाह है । घर पे विलखती माँ और कर्ज तले दबे ऋणी पिता को छोड़कर कैसे खुश रहेगी एक बेटी उम्र भर ।

हमसफ़र बनना है तो साथ-साथ सफर करो चाहे वो हिंदी का सफर हो या फिर अंग्रेजी का suffer ।

चंद समाज के ठेकेदार जिनकी नजर में हम बच्चे है उम्र के बाजार में कच्चे है ; अज्ञानी है नादान है , जी नहीं अनभिज्ञ है आप और आपको अपने ज्ञान पर मिथ्या अभिमान है ।

इनसे अगर सोच बदलने की बात करें तो हम बागी हो गए , इस खोखले समाज में दागी हो गए । लेकिन इस कुप्रथा के फन कुचलने को हमें आग 🔥 बनना होगा , क्योंकि अगर दाग लगने से कुछ अच्छा होता है तो दाग अच्छे है ।

🌱SwAsh🌱

✍️shabdon❤️ke💖ashish✍️

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