आख़िर पहुँच ही गई शहर की गर्मी गाँव तक भी 🥵


अगर आपको लगता है कि विकास गाँव तक नहीं पहुंचा तो शायद आपने गाँव को तब और अब देखा ही नहीं । वो धूल से सनी कच्ची सड़क अब चमचमाती अलकतरे की काली नागिन के दोनों तरफ सफेद पट्टी के निशान में तब्दील हो गई है । वो बरसात में कीचड़ से संघर्ष करते रास्ते अब झमाझम में नहा कर अपने कायाकल्प पर इतराते नजर आते है । वो लालटेन की धीमी रौशनी में दरवाजे के पीछे से अपने पति के आने की राह देखती चुन्नू-मुन्नू की माँ के घर से शहर तक दूधिया रौशनी में नहाती जमीं अब उस आसमां के चाँद के भरोसे नहीं जो पूरनमासी को पूरा और अमावस को नदारद हुआ करता था । ना तो पहले की तरह झोपड़ी है ना फुस के छप्पर , ना मिट्टी की दीवारें ना टाली ना चौबारें । अब देहात में भी किसी के हाथ झुलाने वाले पंखें के भरोसे नहीं , सर पे नाचता है तीन टांगों वाला खेतान या तूफ़ान । कभी जिन्हें गुरूर हुआ करता था प्रकृति की ताजी हवा पर आजकल समृद्धि के एयरकंडीशन के सुरूर में मगरूर है । 
          
           अब शहरी साहब और उनके परिवार को जब शहर जलाता है तो कहां वो ख्वाबों का गाँव याद आता है । मकान तो दोनों जगह पक्के है मगर फिर भी गर्मी से परेशान बच्चे है । गर्मी की छुट्टियाँ मनाने वो पहाड़ों पे जाने लगे है जो कभी रसीले आम का ताजा स्वाद चखने अपने गाँव आया करते थे । खेत-खलिहानों में तो थोड़ी राहत जरूर है मगर आधुनिकता की चाहत के आगे विलासिता का दास मानव मजबूर है । 
       नेटवर्क और कनेक्टिविटी ने तो ग्रामीण जीवन का दामन विलासिता से भर दिया मगर माटी की सौंधी सुगंध सजाये संयुक्त परिवार की एकता की इकलौती मिसाल उस आँगन को नफरत की कंक्रीट से पाट दिया । अब तो ये अंतरात्मा ही जाने कि अमीरी में आराम है या फिर उस फ़क़ीरी में सुकून था । 



शहर फैलता गया आहिस्ता-आहिस्ता 
और गाँव सिमटते गए रफ्ता-रफ्ता 
जाने वो हरियाली से लदी खुशहाली कहाँ है अभी 
आख़िर पहुँच ही गई शहर की गर्मी गाँव तक भी 🥵



🌱SwAsh🌳

@shabdon_ke_ashish ✍️

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