प्रेम की पात्रता

प्रेम की पात्रता 

अगर आप इस असमंजस में है कि क्या मैं उनके प्रेम का पात्र हूँ या नहीं ! तो फिर आप निःसंकोच अपने ह्रदय को प्रेम की दरिया में गोता लगाने में बाधक बनने का कार्य कर रहे है । क्योंकि योग्यता वहाँ परखी जाती है जहाँ प्रतियोगिता हो । प्रेम तो साधक भी है और साधना भी । ये माध्यम भी है और मंजिल भी । फिर इस भय से की मैं लायक ही नहीं प्रेम को अस्वीकार करना सर्वथा अनुचित है । अगर आप प्रेम में विश्वास रखते है तो यकीन मानिये सच्चा प्रेम कुपात्र को भी सुपात्र बना देता है । हाँ मगर इसके लिए प्रेम को समझना जरूरी है क्योंकि आप अपनी पसंद या चाहत को अगर प्रेम समझ रहे है तो ये आपकी भूल है क्योंकि पसंद तो उस गुलाब की तरह है जो कली से फूल बनते हुए मन को बेहद आकर्षक और रोचक लगता है मगर सूख कर बिखर जाने के बाद सारी चाहत क्षण में दफन हो जाती है और निकल पड़ता है ये आवारा मन फिर किसी नए खिलते गुलाब की तलाश में ।

जो लोग अपनी आधी - अधूरी आशिकी को प्रेम का दर्जा देकर बेवफाई का राग अलापते है उनके लिए एक जरूरी सन्देश प्रेम में ना तो वफ़ा की सौगंध घुली होती है ना ही बेवफाई की महक । अगर आप प्रेम में है तो आप कभी अलग हो ही नहीं सकते । क्योंकि प्रेम को समय ,परिस्थितियां ,हालात ,जज्बात ये सब कभी रोक ही नहीं सकते । अगर हारते है तो आप स्वयं क्योंकि आपको खुद से अत्यंत मोह जो है ,प्रेम तो सदा से विजयी रहा है । 

रूठ जाने से या फिर टूट जाने से मोहब्बत कमजोर पड़ती है । प्रेम में तो रूठने और मनाने का भी अपना मजा है । और रही बात टूटने की तो प्रेम में ये असंभव है । आपको किसी से प्रेम है ये स्वयं इस बात का प्रतीक है कि आप अटूट है ।

🌱SwAsh🌱

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