मगर कब तक ?

चम्मच से चिपके च्यवनप्राश को चाटता हुआ मैं गुलाबी सर्दी की चमचमाती सुबह को निहार रहा था कि तभी माँ ने आवाज लगाई और चाय की प्याली मॉर्निंग वॉक करती हुई मेरे सामने स्टडी टेबल पर आ गई । वैसे तो आजकल मैं कुछ खास पढ़ता-लिखता नहीं पर चाय की चुस्कियां लेते हुए योजनाएं ढ़ेर सारी बना लेता हूँ । सामने परीक्षाओं की एक श्रृंखला तो बाहें पसारे जरूर कतार में खड़ी है पर इच्छाओं ने जैसे हथियार डाल रखें है । ऐसा नहीं है कि जीवन में कुछ कर गुजरने की कामना ना रही पर असफलताओं से बारंबार बेहद करीबी सामना जो हुआ उसने ज़रा सा और आलसी बना दिया है । हररोज निहारता हूँ कभी सजी तो कभी बिखरी किताबों को पर एक नई शुरुआत कहाँ से की जाए प्रकृति की ओर से कोई संकेत नहीं मिल पा रहा है।

  इसी उधेड़बुन में सुबहो शाम उलझा मैं कभी अपनी नौकरी पेशे वाली व्यस्त दिनचर्या को तो कभी लॉक डाउन के उस असीमित ख़ालीपन को याद करते रहता हूँ । दो धाराओं में बंटी मेरी जिन्दगी का एकीकरण भी तो आख़िर उसी काल में हुआ था जब समूचा विश्व बंद था चारदीवारी में तब मेरे मन के परिन्दे ने रफ्ता-रफ़्ता खुले आसमान में एक चहकती चिड़िया के साथ अपने भीतर दबी सारी बातों को परत दर परत खोलना शुरू किया और बातों बातों में ही ये सफर कब दो अनजान मुसाफिरों का कारवाँ बन गया पता हीं ना चला और हैरत की बात तो ये है कि ये दोनों एक-दूसरे को कभी अजनबी लगे ही नहीं ।

  साथ पढ़ने की योजना भी क्या खूब रंग लाई ,धीरे-धीरे एक-एक कर कई किताबें हमने एक साथ आत्मसात कर लिए । अब थोड़ा कच्चा-पक्का तो होगा ही , आख़िर हम भी तो इंसान ठहरे । मगर भूलते-भालते भी बहुत कुछ याद हो गया । और फिर सरकार की उदासीनता व आयोग की गिरगिट की भांति रंग बदलती व्यवस्था की वजह से मन उचटने सा लगा इस दीर्घसूत्री पढ़ाई से । पर कई दफा इससे वियोग लेने के बाद भी हर बार वक़्त का पहिया हालात की गाड़ी को तक़दीर के उसी स्टेशन पर लाकर खड़ी कर देता है - " चलिए फिर से पढ़े " ।
मगर कब तक ! 🤔

@shabdon_ke_ashish ✍️



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