वहम नहीं थी वो दहशत

बात तब की है जब मैं स्नातक का छात्र था और सिविल सर्विसेज का अरमान लिए दिल्ली के कोटला जा पहुंचा । एक निम्नमध्यवर्गीय परिवार के लिए परीक्षा की तैयारी भी किसी युद्ध से कम नहीं होता , क्योंकि ना जाने किस-किस से और कितना लड़ना पड़ता है , वक़्त और हालात से लड़ाई तो फिर भी एक सामान्य सी बात है । और अगर आप कैटेगरी से भी जेनरल है तो आप भी उसी जनसाधारण एक्सप्रेस का हिस्सा है जिसमें भीड़ तो कम होने से रही बस आपको अपनी जगह बनानी है । 
       यूँ तो मैं दिल्ली पहुँच जरूर गया था मगर दिल्ली अभी दूर थी । वहाँ जाकर देखा की यहाँ पढ़ने वालों की एक फौज है और बिगड़ने वालो की भी मौज है । पैसा ,परिश्रम ,पसीना और प्यार पानी की तरह बह रहा है चयन आपको करना है कि आप बहना किस नदी में चाहते है । 
             बस मुश्किल से एक सप्ताह लगा सबकुछ समझने में फिर मैंने अपनी साधना शुरू कर दी । साहित्य से लगाव तो सात साल की उम्र से ही था मगर सामान्य ज्ञान से सच कहूँ तो साहित्यिक प्रेम तभी शुरू हुआ । ये नया-नया प्यार दिन ब दिन उफान चढ़ता गया और इस चक्कर में हम अपना विषय ही गोल कर बैठे फिर भी अगले साल किसी भी तरह चंद महीनों के मेहनत से स्नातक की परीक्षा पास कर गए ये और बात है । मगर इस एक डेढ़ साल में बहुत कुछ हुआ कुछ इस दुनिया से तो कुछ उस दुनिया से । जी हाँ आपलोग बिल्कुल सही सोच रहे है मेरा मतलब उसी दुनिया से है जो हमारी समझ से परे है । 
              दिल्ली में जो हुआ उसे मैं बीमारी समझ रहा था मगर जब कोई दवाई काम ना आई तो माँ की दुआ मुझे वापस बिहार खींच लाई । मगर आरा आकर भी आराम नशीब ना हुआ । सरदर्द और बेचैनी ,बुखार ,टाइफाइड और भी पता नहीं क्या क्या ? डॉक्टर बदलते रहे व दवाइयों का रंग भी मगर तबियत के ढ़ंग में कोई सुधार ना हुआ । तो अब बात वहाँ तक जा पहुँची जहाँ मैं पहले कभी नहीं गया था ,एक जाने-माने तांत्रिक और माँ तारा के भक्त सिद्ध पुरुष बाबा के पास । इन्होंने मुझे देखते ही सबकुछ जान लिया और इतना खुश हुए जैसे मेरी ही प्रतीक्षा कर रहे थे । आगे जानने से पहले दिल्ली में मेरे साथ क्या हुआ था ये जानना जरूरी है । एक शाम मैं बस से उतरा वो इलाका थोड़ी दूर बिल्कुल शांत रहता था और ब्रिज के उस तरफ फिर से महानगर का शोर । हम चार दोस्त जो मेरी ही बिल्डिंग में रहते थे टहलते हुए घर की ओर बढ़ने लगे फिर हमने गली की मोड़ पर आइसक्रीम खाई और अपने अपने कमरे में पढ़ने चले गए । रात को लगभग 12.30 के आस-पास मेरा शरीर तपने लगा और सर दर्द से फटने लगा । सौभाग्य से बगल वाले कमरे से मिश्रा जी कुछ पूछने के लिए पधारें मगर मेरी हालत देखकर वो अपना सवाल भूल गए । किसी तरह रात कटी और सुबह हम दिखाने गए मगर अगली रात तक भी कोई असर ना हुआ । तीन-चार दिनों में ही मैं एकदम कमजोर और बहुत ज्यादा बीमार दिखने लगा पर पढ़ाई छूट जाने के डर से कुछ निर्णय ना ले पा रहा था । फिर दोस्तों ने तत्काल टिकट करवा कर घर भेजने का फैसला किया और मैं अपनी किताबों और टूटते ख्वाबों के साथ पूर्वा एक्सप्रेस में सवार हो गया अब वाकई दिल्ली दूर लग रही थी मगर मेरी प्रतिभा का जो असर कोटला के उस 12/20 पे पड़ा था उसके सभी कायल थे पर ये सच है कि समय और परिस्थितयां जो चाहे जब चाहे जैसे चाहे करवा लें । घर पहुँचते ही किताबें किनारे हो गई और हम डॉक्टर ,वैध , ओझा और तांत्रिक के सहारे । सर दीवारों और दरवाजों पे जोर से पटकते मैंने एक दिन इतनी ज्यादा हाई पावर की दवाई खा ली कि बेहोश हो गया ।
            ये सच है कि मुझे ज्यादा यकीन नहीं था पर ये उससे भी बड़ा सच कि इससे पहले कभी ऐसी स्थिति से सामना भी नहीं हुआ था । सकारात्मक रहना सही है पर नकारात्मकता को नकारना सर्वथा गलत । हम दोनों ही प्रकार के अनगिनत ऊर्जाओं से घिरे रहते है बस समय और अवसर उन्हें हमारे ऊपर हावी कर देता है ।
           बाबा ने मुझे बैठने को कहा और बाकी लोग जो थे उन्हें बाहर जाने का आदेश दिया । एक अजीब सी चमक थी उनके चेहरे पर और एक अद्भुत सुगंध थी उनके कमरे में । उन्होंने मेरा सर स्पर्श किया और आँखें बंद कर के कुछ मन ही मन उच्चारण करने लगे । थोड़ी देर बाद दिल्ली का सारा किस्सा कह डाला और कहा कि तुम मन और तन दोनों से पवित्र हो और हृदय भी बहुत उत्तम है परंतु ऐसी आत्मा को और भी सावधान रहने की आवश्यकता होती है । ये सब सुनकर मैं दंग रह गया मगर चकित होने से ज्यादा जरूरी मुझे चिकित्सा के चक्कर से बाहर निकलना था । उसके बाद उन्होंने बहुत सारी बातें बताई और पूजा पाठ के साथ ताबीज और दो दवाई भी दी । 
          धीरे-धीरे मेरी सेहत में गुणात्मक सुधार नजर आने लगा और मेरे एक मित्र की सलाह पर मैंने बैंक में आवेदन कर दिया । उन दिनों ibps अपने शुरुआती दौर में था । मेरा चयन भी केनरा बैंक में क्लर्क के पद पर हुआ और गुडगांव में प्रशिक्षण पूर्ण करने के बाद मैं आगरा जा पहुंचा । 
          अब आगरा में जो हुआ वो मेरा इस दुनिया से दूसरा सामना था जो बिल्कुल अलग अनुभव था । आगरा की कहानी फिर कभी वाकई में ये महज वहम नहीं कोई दहशत थी जिसके बारे में सोच कर आज भी सिहर जाते है ।

🌱SwAsh🌳

@shabdon_ke_ashish ✍️

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