चाय :- लत नसीहत मशवरा या राय
वैसे तो चाय सुबह की दस्तक है और शाम का पैगाम है मगर इसके अलावा भी क्या इसके और कोई नाम है , पीने वाले तो सोच रहे होंगें हमें तो जीभ की तलब बुझानी है इन सबसे भला हमारा क्या काम है ? पर एक लेखक का मन और उसकी कलम तो तलाशती रहती है हर प्याली में सुगंध और हर घूँट में स्वाद का रंग ।
तो फिर चलिए चाय पर इस चर्चा को शुरू करते है । आरंभ उस समूह के विचारों से करते है जो चाय को एक लत मानते है । सच कहूँ तो आबादी का एक बड़ा हिस्सा इसी मनोविकार का शिकार है कि मुझे तो तेरी लत लग गई लग गई ज़माना कहे लत ये गलत लग गई ; पर है तो है ,आख़िर लबों को प्याली की लाली से बेइंतहा प्यार जो है । कुछ लोग तो काम करने के लिए चाय पीते है और कुछ जब कोई काम ना हो तब चाय ही पी लेते है आख़िर ये भी तो एक काम है । कुछ लोग छुप छुपाके पीते है तो कुछ सरेआम चाय से अपनी आशिक़ी का इज़हार करते है ।
यूँ कभी आदत तो नहीं थी चाय हमारी पर लबों से रोज मिलते-मिलते लत बन गई ...
अब बात करते है कि चाय नसीहत कैसे है 🤔 , ज्यादा सोचने वाली बात नहीं इसमें देखिए अलग-अलग दूध ,पानी , चीनी ,अदरक , इलायची सबके अपने रंग है , अपनी पहचान है , अपना स्वाद है और अपना-अपना काम है । मगर इन सबको एक साथ मिलाकर इन्हें एक नया रंग , नई स्वाद और नई पहचान देती है चाय और इसे चाहने वाले इसी चाय को छान कर अलग कर देते है क्योंकि उसकी उपयोगिता बस वहीं तक है ; ठीक ऐसे ही व्यक्ति की उपयोगिता समाप्त होने पर ये समाज उसे छाँट कर अलग कर देता है । तो फिर कैसी लगी नसीहत ?
रंग बदलती दुनिया का एक और रंग देखिये जनाब , चाय को ही फेंक दिया जाता है चाय बनने के बाद !
चाय मशवरा भी है और राय भी , मशवरा दोतरफा होता है जहाँ दो लोग मिलकर किसी मुद्दे को नतीजे तक ले जाते है इसमें दोनों का मत भिन्न भी हो सकता है और समान भी मगर परिणाम एक ही होता है । दूसरी तरफ राय वैसी सलाह नहीं है जो माँगने पर दी जाये ये तो अपना-अपना नजरिया है कि कोई चाय को लत समझता है तो कोई नसीहत , किसी को प्याली से उठती इस सौंधी सुगंध में मशवरे की महक आती है तो कोई हर घूँट पे अपनी राय देता है । अब बात यहाँ आकर ठहर जाती है कि प्याली भले एक हो मगर पीने वाले कम से कम दो हो मशवरा तो तभी सम्भव है और राय भी तन्हाई में किसे दी जाये इसका भी मजा तो तभी आये ना जब कोई चाय पे साथ निभाये ।
अकेले थे हम पर चाय दो प्यालों में थी ,इस दिल से मशवरा करने का ख्याल अच्छा था ....
चाय सिर्फ पतीले में नहीं बनती , ये मौसम ,मिज़ाज ,चाहत , ख़्याल और ख़्वाब से भी बनती है । तो फिर मन के उबाल को चाय का नाम देने में कोई हर्ज तो नहीं ।
पी लूँ .... है पीने का मौसम 💚
तेरे संग इश्क़ तारी है, तेरे संग इक ख़ुमारी है
तेरे संग चैन भी मुझको, तेरे संग बेक़रारी है
तुझपे हैं हारे, मैंने वारे दो जहाँ 💖
🌱SwAsh🌳
@shabbdon_ke_ashish ✍️
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