Bihar Election

अब चुप नहीं बैठ सकते
अब तो हद हो गई 
कहीं फिर बहूत देर ना हो जाये !

खामोशी का मतलब कमजोरी समझने लगे है लोग 
अब ये मौन भंग होगा और ये लघु संवाद कलम से क्रांति और सागर में सुनामी का प्रवर्तक बनेगा ।

कई दिनों से बिहार चुनाव के भाषण वीरों का एक हाई वॉल्टेज ड्रामा देख रहे है ।

#10लाख vs #19लाख

मतलब सबकुछ से थक गए तो एक लाचार बेरोजगार युवा वर्ग मिला है ।
चलिए कम से कम हिन्दू - मुसलमान , दलित - महादलित , अगड़ा - पिछड़ा , क्षेत्र , समुदाय , परिवार , कुटुंब इत्यादि सामाजिक दैत्यों से तो मुक्ति मिली मतदाताओं को ।

किसको रोजगार देने की बात करते है आप , आप है कौन ? कोई प्रतियोगिता पास करके नेता बने है क्या ? 

What is your authority to issue these critical questions ?

Q.Who gave you power ? 

Ans. We the people of India .

So , shut up your rubbish mouth .

कभी किसी निश्चित परीक्षा के अनिश्चित पाठ्यक्रम का तैयारी किये है आप लोग , खैर छोड़िए ये आपके बस की बात भी नहीं ।

हमारे संविधान की दुहाई देने वाले आपलोगों को तो ठीक से संविधान भी नहीं पता होता । 

खुद का नामांकन प्रपत्र तो स्वयं भर नहीं पाते उसके लिए भी एक अधिवक्ता और दो सलाहकार रखा है और आप हमें रोजगार देंगे ।

मैं चुनौती देता हूँ कभी भी किसी नेशनल चैनल पर सरकारी कर्मचारी या सरकारी नौकरी की तैयारी करने वाले युवक और सभी दलों के नेताओं का लाइव डिबेट करवाया जाए । और अगर तर्क और तथ्य तथा जानकारी से हमें हरा दे ये प्रजातंत्र के ठेकेदार तो सरकारी नौकरी ही खत्म करवा देना ।
विषय नेता लोग अपनी पसंद का रख सकते है , हम किसी विषय पर चर्चा करने को तैयार है । इतिहास , भूगोल , राजनीति , अर्थव्यवस्था कोई भी , विषय उनकी रुचि के अनुसार ।

हिम्मत ही नहीं है ।

ग्रुप D की परीक्षा पास नहीं कर सकते और रोजगार की बात करते है । 

सरकारी नौकरी निकालना और करना कोई चुनाव लड़ना जैसा नहीं है कि #अमेठी छोड़कर #वायनाड से जीत गए 

और हमें पकोड़े तलने के लिए कहते है चाय बेचने के लिए कहते है । बहूत खूब प्रधान सेवक जी सारे विश्वविधालयों और महाविधालयों को बंद करवा दीजिए उसमें कराही और चूल्हा - छनौटा भिजवा दीजिए । 
आखिर ,
तलेगा इंडिया तो चलेगा इंडिया 

बिहार वाले चच्चा कहते है कि रोजगार देने के लिए पैसा कहाँ है ? वाह एक तो आप कभी देंगें नहीं और कोई कम से कम बोल रहा है तो बोलने भी नहीं देंगे ।

आपलोगों को सैलरी और पेंशन बराबर मिल जाता है ना ,  विधानसभा हो चाहे लोकसभा अगर अपने वेतन में बढ़ोतरी या पेंशन की बात आती है तो एकदम ध्वनिमत से पारित हो जाता है । आजतक कभी हम ये सुने ही नहीं है कि विधायक या सांसद का कोई आर्थिक बढ़ोतरी वाला विधेयक लटका हो या उसी दिन पारित ना हो पाया हो ।

लेकिन रोजगार तो दूसरों को देना है ना । पिछले सचिवालय सहायक में सब पैसा लेकर कैसा - कैसा लड़का सबको घुसा दिए आप । हमलोग ईमानदारी के भरोसे आजतक इंतजार में है । 

अगर ठीक से जाँच हो तो पिछली बहाली के 90 प्रतिशत फर्जी है सब । लेकिन इस पर कौन बोलेगा ?

बेरोजगार युवा का उपहास करना बंद कर दीजिए आपलोग । मेरा आप दोनों दलों से विनम्र निवेदन है ।
आज हमारी युवा पीढ़ी के इस दुर्दशापूर्ण संघर्ष का जिम्मेदार आप सब ही है । 

कभी देखे है आपलोग की एक नौकरी की उम्मीद में घर से दो सुखी रोटी लेकर रेलगाड़ी की छत पर जान को जोखिम में डाल बिना टिकट के कोई बाबू दे ना निकाल जैसे-तैसे लेकर दोस्तों से उधार पैसे एक बेरोजगार घर की परिस्थियों से लाचार परीक्षा केंद्र तक पहुंचता है बिना कुछ खाए बस एक उम्मीद लगाए की इस बार बदल दूँगा सारे गए पिछले कर्जों को भर दूँगा ।

मगर ये इस एक बार के चक्कर में हर बार ना जाने कई बार निकल जाते है । 

अगर कोई 0.12 से भी फेल होता है ना तो उसे फिर से सारी प्रक्रिया कर के दो साल गुजार के आना पड़ता है ।पर आपलोगों को कहाँ से पता होगा कभी 0.12 वोट से हारेंगे तब ना दर्द समझेंगे ।

माता-पिता की उम्मीद , सफल होने की जिद , बहन की राखी का कर्ज , छोटे भाई के लिए फर्ज , दादी की दवाई का खर्च , सब उस प्रश्नपत्र में नजर आता है साहब ।

जब हम परीक्षा कक्ष में हाथ में कलम नहीं अपनी तकदीर  , अपना आने वाला कल , अपना भविष्य , अपनी किस्मत लिए एक भ्रष्ट व्यवस्था के विरुद्ध लड़ रहे होते है और किसी सेठ , साहूकार , जमींदार का बेटा किसी मुन्नाभाई और दलाल के भरोसे किसी चाय दुकान पर सिगरेट के छल्ले उड़ा रहा होता है ।

पर , परिणाम तो अंततः उसी के हक में जाता है जो पटना पैसा पहुँचाता है । 

झारखंड ने भी अब बिहारियों को परीक्षा में सम्मिलित होने से मना कर दिया । वो भी विधानसभा से आदेश पारित करवा के और तो और हमलोग जो सचिवालय सहायक की परीक्षा पास कर चुके थे , उस परीक्षा को भी निरस्त कर दिया अपरिहार्य कारणों से । वाह रे अपना लोकतंत्र वाह और वाह रे झारखंड ।

लेकिन झारखंड के सीने में बिहार का ये डर , मुझे अच्छा लगा ।

लेकिन क्या कोई राजनीति का दलाल किसी नेता का तेजस्वी लाल हमारे साथ हमारे हक के लिए खड़ा हुआ , नहीं ना , और कभी होगा भी नहीं ।

मित्रों हम उस अपंग शासनतंत्र के बेजान हिस्से है जिनमें जान तो बहूत है पर जीने नहीं दिया जाएगा ।

आपकी सारी डिग्रियों पर सरकार की एक कलम भारी पड़ेगी ।

आप कल भी लाचार थे और कल भी लाचार होंगे ।

तैयारी करते हुए भी और चयन होने के बाद भी ।

लोकतंत्र जनता का है पर जनता के लिए तो अपने देश में नहीं है ।

एक सरकारी नौकरी लेने में और करने में आप अपना संपूर्ण जीवन बिता देंगे । वो आप जैसे लाखों को उँगलियों पर नचाएंगे जो आप इनको जीता देंगे ।

नेता कभी जनता का नहीं होता दोस्त , जनता नेता की होती है ।

एक - एक मत देने वाला अपने नेता के प्रति जिम्म्मेदार होता है , परन्तु नेता सिर्फ मंच पर आसीन चंद चाटुकारों और दलालों के प्रतिनिधि ।

तो ये 10 लाख और 19 लाख हमारे जख्मों पर नमक के सामान है ।

कोई किसी को कुछ नहीं देगा । अगर दिया होता तो अपनी बात करते , एक - दूसरे की शिकायत ना करते ।

सावधान 

कहीं आप फिर से किसी और के द्वारा छले ना जाए ।

तो अपनी किताब उठाए और स्वविवेक से संविधान को आत्मसात कर मतदान केंद्र पर जाए ।

ये सरकारी नौकरी कोई नहीं देगा । सरकार बनेगी तो बहाने हजार होंगे , और आप फिर से बेरोजगार होंगे ।

और फिर कोई अन्य पप्पू पांडा हम बेरोजगारों का उपहास करवा रहा होगा । 

यही शाश्वत सत्य है 

हम अपनी तकदीर और अपनी किस्मत का ठीकरा फिर से अपने इस मजबूर बिहार पर फोड़ देंगे ।

तब हमारे साथ ना देश के प्रधानसेवक होंगे , ना किसी कुल के चिराग , ना किसी ओजस्वी के तेजस्वी लाल , ना कोई बिहार वाले चच्चा , ना कोई नेता का बच्चा ।

ये है अपना बिहार

मैं आरा से " आशीष कुमार "

" आशीष " अब बस एक नाम नहीं शब्दों की पहचान है ।

नमस्कार 

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