आज सुबह गर्मी से थोड़ी राहत थी अरसों बाद फिर एक बार चाय बनाने की चाहत हुई लोग तो चाय बनाते है स्वाद के लिए या फिर है ये कुछ लोगों की आदत भी मगर मैं ख्वाबों के पतीले में यादों को उबालता हूँ जब तक चाय बनती है अतीत को खंगालता हूँ जैसे-जैसे ये पत्तियाँ मिश्रण में घुल-घुल कर रंग बदलती है हमारी बातों की वही पुरानी कश्ती एक नई दरिया में टहलती है गर्म होता है बर्तन की तली से ऊपर तक का मौसम और फिर ऊफान आता है मानों मन के भीतर भी कहीं किसी निम्नदाब के केंद्र पे तूफान आता है उस दौर से इस दौर तक सबकुछ घुम जाता है एक चक्रवात सा आखिर जीवन भी तो एक बवंडर है कुछ हसीं कुछ नमी लादे बात का इधर मैं खोया हूँ ख्यालों में उधर रंग चढ़ गया है उमड़ते उबालों में प्रतीक्षा में है चाय कि हम होश में आये जागते हुए भी ख़्वाब जो देखते है और इस सौंधी सुगंध से अलाव सेकते है ख़्वाब को तो टूटना ही है एक दिन फिर चाहे वो हक़ीक़त बने या फिर ख़्वाब ही रहे पुरबा का एक झोंका रसोड़े की खिड़की को चीरता हुआ मेरे बालों को सहला गया मानों चाय बन गई है ये याद दिला गया ध्यान भंग होने पर एक मुस्कान लाज़िमी थी चाय तो तैयार थी मगर फि
नूर-ए-हिन्द :- " कोहिनूर " , जी हाँ बिल्कुल ठीक समझा आपने प्रायद्वीपीय भारत की कोख से जन्मा मैं वही नायाब खुदाई ख़िदमतगार हूँ ,मुझे कई दफा लूटा गया ,तलवारों के दम पर कब्जा किया गया ,कभी उपहारस्वरूप सहर्ष भेंट किया गया तो कभी भयवश शौप दिया गया ,कभी सत्ता के मद में चूर शासकों द्वारा बलपूर्वक हड़पा गया तो कभी आक्रांताओं के द्वारा इस राज्य से उस राज्य तक गोद में ले जाया गया । मगर कभी खरीदा या बेचा ना जा सका ,आखिर खरीदता भी भला कौन ? मेरी कीमत लगे तब ना ,मैं तो ठहरा बचपन से ही बेशकीमती और सफर करते करते पता नहीं कब जवान हो गया और बन गया ब्रिटेन की महारानी के सर का ताज । हाँ लेकिन बारंबार तराशे जाने से मैं हल्का और पहले से भी ज्यादा चमकदार जरूर हो गया । आइये सुनाता हूँ मैं अपनी दास्तान ,कैसे बना मैं नूर-ए-हिंदुस्तान ? Hi everyone वाड़कम Let's start my brief introduction ,Basically I m a south indian .haaaahaaaaaa 😁 .... Don't take it to heart I m and I will always an indian first . तो हुआ यूँ कि मुझे आंध्रप्रदेश के गुंटूर जिले में स्थित गोलकुंडा की खान से जगाया गया ,ना जाने कि
चम्मच से चिपके च्यवनप्राश को चाटता हुआ मैं गुलाबी सर्दी की चमचमाती सुबह को निहार रहा था कि तभी माँ ने आवाज लगाई और चाय की प्याली मॉर्निंग वॉक करती हुई मेरे सामने स्टडी टेबल पर आ गई । वैसे तो आजकल मैं कुछ खास पढ़ता-लिखता नहीं पर चाय की चुस्कियां लेते हुए योजनाएं ढ़ेर सारी बना लेता हूँ । सामने परीक्षाओं की एक श्रृंखला तो बाहें पसारे जरूर कतार में खड़ी है पर इच्छाओं ने जैसे हथियार डाल रखें है । ऐसा नहीं है कि जीवन में कुछ कर गुजरने की कामना ना रही पर असफलताओं से बारंबार बेहद करीबी सामना जो हुआ उसने ज़रा सा और आलसी बना दिया है । हररोज निहारता हूँ कभी सजी तो कभी बिखरी किताबों को पर एक नई शुरुआत कहाँ से की जाए प्रकृति की ओर से कोई संकेत नहीं मिल पा रहा है। इसी उधेड़बुन में सुबहो शाम उलझा मैं कभी अपनी नौकरी पेशे वाली व्यस्त दिनचर्या को तो कभी लॉक डाउन के उस असीमित ख़ालीपन को याद करते रहता हूँ । दो धाराओं में बंटी मेरी जिन्दगी का एकीकरण भी तो आख़िर उसी काल में हुआ था जब समूचा विश्व बंद था चारदीवारी में तब मेरे मन के परिन्दे ने रफ्ता-रफ़्ता खुले आसमान में एक चहकती चिड़िया के साथ अपने भीतर दबी सारी बात
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