बेरोजगार से बलात्कार बार-बार
लघु-लेख
बेरोजगार से बलात्कार बार-बार
दोस्तों बेरोजगारी एक ऐसी जवानी है जिसे सरेआम निर्वस्त्र कर उसकी नुमाईश का तमाशा बनाया जाता है । कभी परीक्षा में विलंब ( #NTPC ), तो कभी प्रश्नपत्र लीक (#bssccgl2014) , कभी परीक्षा रद्द तो कभी परिणाम रद्द और कभी कभी तो अपरिहार्य कारण से विज्ञापन ही रद्द ( #jssccgl2015) ।
बेचारा नौजवान हर वर्ष अपनी बढ़ती उम्र में एक और वर्ष समाकलित करता हुआ , पुनः किसी अन्य अवसर की प्रतिक्षा में नजरों के क्षणिक दृष्टिदोषों को उम्मीद के शीशे से उपचारित कर निरंतर प्रयत्नशील रहता है । पर हर बार प्रारंभिक फिर मुख्य और अंत मे साक्षात्कार के माध्यम से उसकी इकट्ठा की गई योग्यता का आकलन कुछ चुने हुए लोग अपने-अपने दृष्टिकोण से करते है । अपनी वर्षों की आबरू को सजा कर निखार कर अतीत की त्रुटियों को सुधार कर वर्तमान के दर्पण में अपनी इच्छाओं का तर्पण कर एक अभ्यार्थी अपनी दावेदारी को उनके इंसाफ की तराजू के अदृश्य पटल पर रखता है । पर जरूरी नहीं कि माप-तोल के इस अल्पाधिकार बाजार में उसके परिश्रम के खरीदार मिल ही जाए ।
शासन का धौंस दिखा कर सत्ता के मद में चूर चंद सत्ताधारी निशाचर बारी-बारी से अपनी ईच्छा और स्वाद के अनुसार थोड़ा-थोड़ा धीरे-धीरे टुकड़ों में कतरा-कतरा बूँद-बूँद चूस जाते है । पर बेरोजगारी की इस जमात के पीछे एक और जमात इनका शिकार बनने को तैयार रहती है ।
बस एक सरकारी नौकरी के लिए सबकुछ सहने को तैयार भारतीय निम्नवर्गीय मध्यम परिवार का एक और होनहार छोड़ कर अपने सारे यार , घर-संसार , तीज-त्योहार और शहर की किसी गली में धुंध में छिपी धुँधली सी ही सही शायद अब तक अनकही इन आँखों मे बसी एहसासों से दबी किसी के लौट आने का इंतजार , ना इजहार ना इकरार बस अश्कों में रफ्ता-रफ्ता बहे भविष्य के सपनों का प्यार और ना जाने कितने कुछ अपने कुछ पराये कुछ अवसरवादी रिश्तेदार ; सब मोह माया है जाने दो "सरकार" ।
सरकार जो कभी कह के तो कभी बिना कहे लेती है - "परीक्षाएं" , और आश्चर्य तो तब होता है जब सब देने को सहर्ष तैयार रहते है -"इच्छाएं" ।
प्रतियोगिता के इस दलदल में शोषित वर्ग , शासित वर्ग के बेशर्म गर्म बिस्तर पर बारंबार लेटाया जाता है और ये मानसिक बलात्कार हर बार पहले वाले से ज्यादा वेदना देती है , परन्तु जो सब झेलकर खेल जाता है वही सिकन्दर और शेष जो पीछे रह जाते है मुख्य धारा से बिछड़कर वंचित , कलंकित और ताउम्र विकास की रेखा से नीचे बस आधार कार्ड से लिंक होने की कतार में खड़े लाचार ।
"धन्य है ये देश और धन्य है ये सरकार" ।
अंत मे तुम और ज्यादा पढ़ो और छोड़ो - "जाने दो ना यार" ।
लेखक
आशीष कुमार
✍️ shabdon_ke_ashish ✍️
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