पार्थ भी तुम हो और रघुनाथ भी तुम ही 🙏

तुम रुक जाते हो ना हर बार कुछ नया , कुछ बड़ा करने से पहले आज भी । दरअसल ये रुकने की आदत तुम्हारी कमजोरी नहीं है ये तो वो ताकत है जिसे तुम्हारे अंदर पिरोया गया है बचपन से - हार जाने का डर । मगर अपने भीतर के भय को तो तुमने कई दफा हराया है ,इसी उठा पटक ने तो तुम्हे जीना सिखाया है । तो फिर विचलित है क्यों तुम्हारे मन का अर्जुन एक बार फिर जीवन के महाभारत से ,सफलता तो संघर्ष से ही मिलती है ये परम् सत्य है । अंतर बस इतना है कि इस युद्ध में पार्थ भी तुम हो और रघुनाथ भी तुम ही । तो फिर अविलंब आरंभ करो बिना किसी संदेह के लक्ष्य तुम्हारा सामने है ।

Shabdon_ke_Ashish ✍️

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