बेरोजगार बकरी पंचायत 🐐


सरला आ गया है ,मिंटू के दरवाजे पर हाजिरी लगाये बिना पानी भी नहीं पचता उसको । आजकल धीरन भैया दूर रहने लगे है इस कुचरे वार्तालाप से ,उन्होंने मिंटू के बातों से नकारात्मकता की बदबू आने का हवाला देकर पल्ला झाड़ लिया है । रोजाना की तरह मैं सुबह उठकर current अफेयर्स की किताब हाथ में थामे खिड़की खोल देता हूँ ताकि सर्दी की गुलाबी धूप कमरे के माहौल को थोड़ा गर्म कर सके । मगर धूप से ज्यादा तो सरला की बकबक और नये नये ज्ञानी बने बाबा मिंटू का प्रवचन गूँज रहा है । ये वही खिड़की है जिस पर कल मैंने गर्म चाय की प्याली रखते हुए एक पिता-पुत्र का गरमागरम संवाद देखा था । यूँ तो मुझे किसी और के लफड़े में पड़ने की आदत बचपन से नहीं पर आँखे शायद बेवजह चश्मदीद हो गई । बूढ़े बुटन लाल जो कि रिश्ते में मेरे पापा के बड़े भाई है उन्हें उन्हीं के ज्येष्ठ पुत्र मनोज भैया ने शब्दों के बाण से छलनी कर दिया । एक पुत्र का पिता के प्रति इतना आक्रोश अतीत की बेरोजगारी और ताजा ताजा रईस बनने का गुरुर लिए चारों तरफ एक मतवाले हाथी की तरह चीत्कार रही थी । बस चंद मिनटों की गहमा गहमी में ही इतिहास के सारे पन्ने बिखेर दिए गए । चाहे जो भी हो पिता तो पिता होता है ,पर उनका ऐसा अपमान आने वाले वक़्त में इस धरती के मैले आँचल को और मैला करने का करुण संदेश दे रही है । पर बेरोजगारों की मंडली के नायक मिंटू तो अपने दो-चार बेफ़िकरों के साथ जीवन के मजे लेने में मग्न है । सरला का मानो जी ही नहीं भरता इन फिजूल की बातों से लगा पड़ा है अभी तक । 

     मैं थोड़ी देर रुककर कल की घटना को फिर से याद करता हूँ और सोचता हूँ इंसान चाहे अपनी नियत को जितना भी नीलाम कर ले नियति की नीयत कभी खराब नहीं होती । इसके पहले की मेरा लेखक मन और भी कुछ सहेज पाता माँ ने रसोईघर से आवाज लगाई जल्दी से मुँह हाथ धो लो रात की लिट्टी बची है नाश्ते में आज वही मिलेगा । खिड़की को खुली छोड़ मैं अंदर चला जाता हूँ । मगर बकरी पंचायत की बेरोजगारी अभी भी धूप में नँगी नहा रही है और मेरी नौकरियाँ छोड़ने वाले तानों से सनी अनगिनत घण्टिया मानों मेरे कानों में वही पुराने नोकिया 2626 के रिंगटोन की तरह कांप रही है । 

@shabdon_ke_ashish ✍️





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