जीवन का संघर्ष ✍️
एक लेखक दुनिया के रंगमंच पर ही मगर ज़माने से अलग-थलग किसी कोने में जीवन का संघर्ष लिखने बैठा है ।
तभी जिन्दगी आती है एक जोरदार ठहाका लगाती है ।
लेखक : अरे ओ बावली जिन्दगी ये कैसा अठ्ठाहस है ?
जिन्दगी : वही तो मैं भी तुझसे पूछ रही ये कैसा दुस्साहस है ।
लेखक : चेहरे पर सब समझ कर भी ना समझ पाने का अभिनय करता हुआ , जी मैं कुछ समझा नहीं ।
जिन्दगी : सच तो ये है कि अभी तुमने संघर्ष देखा ही कहाँ है और ना ही जिन्दगी ।
मंच पर थोड़ी देर सन्नाटा छा जाता है फिर दुनिया सकल समाज के रूप में अपनी रफ़्तार पे सँवार हो जाती है ........ और लेखक अब किसी और का संघर्ष तलाशने निकल पड़ता है ।
@shabdon_ke_ashish ✍️
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