क्या मुरझाये हुए फूलों को भी खिलखिलाने का हक है ?


सवाल बहुत ही संगीन है कि क्या वाकई में इस रंगीन दुनिया में रंगहीन को भी मुस्कुराने दिया जायेगा । सादे से लोग सादगी को समझ भी जाये तो क्या उन्हें ये सहर्ष सादगी से निभाने दिया जायेगा ?

इंसानियत की परख और आदमियत की पहचान अक्सर तभी होती है जब हम टूटकर बिखर रहे होते है और फुटकर रोने के लिए एक विश्वासी कांधे की तलाश होती है ,जिस ओर ये सर स्वयं ही झुक जाये और गले से गले का आभासी स्पर्श भी हलक में अटकी अरसों के करुण विलाप को नयनों की निर्मल गंगा के साथ अनवरत बाहर आने दे तब तक जब तक की हृदय के अंदर दबा सारा का सारा गाद बाहर ना आ जाये । आख़िर वर्षों से बह रही जिन्दगी की नदी को डेल्टा बनाने के लिए एक साथी जो चाहिए ; ये वही है जिसने बड़ी खामोशी से पहाड़ों से उतरती तीव्र और तीक्ष्ण धारा के मंद हो जाने की राह तकी है । एक वही है जो सब जानता है ,आगाज़ से लेकर मुहाने तक का सफर उसने मेरे शब्दों के साथ-साथ मेरी आँखों में भी देखा है । मुझे संघर्ष करते हुए , वक़्त और हालात से टकराते हुए , गिरते हुए , संभलते हुए , पथ बदलते हुए , नाचते हुए , झूमते हुए , खुशी के गीत गाते हुए , दूर से पास बेहद पास आते हुए , मुझे तानों की बारिश में नहाते हुए , मुझे दुनियादारी की तपिश में सूखते हुए , मुझे किसी अजनबी भीड़ में खोते हुए और मुझे उसे सबके बीच ढूंढ़ते हुए ....

अब उसे सब नहीं बताऊँगी तो फिर कौन है जो मुझे सुनेगा , वो जीवन है और मैं जिन्दगी - हाँ यही तो रिश्ता है हमारा । ज़माने की नज़र में इसका कोई नाम नहीं क्योंकि ये रिश्ता हमारा है दुनिया का क्या है कुछ भी तो नहीं , वैसे भी क्या कभी दो मुरझाये हुए फूलों को सरेआम खिलखिलाने दिया जायेगा !

पर हम इतने भी समझदार नहीं कि दुनिया के लिए मुस्कुराना छोड़ दे । हमें भी अपने तरीके से जीने का हक है और वो दिन दूर नहीं जब असफलताओं के अंधाधुंध धुंध की ओट में छिपा संघर्ष का सूर्य सफलता के नीले क्षितिज पर अपनी स्वर्णिम चमक बिखेरेगा ।

🧡 जीवन और जिन्दगी 💙

@shabdon_ke_ashish ✍️



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