खौफ़ की एक रात 🙄


कल रात चाँद रक्त सा लाल था मानों चाँदनी ने लहू पी लिया हो और अपनी सारी लाली चमकते चाँद पर उड़ेल दी हो । आम लोगों के लिए तो ये बस एक सामान्य सी बात थी , सच कहूँ तो अधिकांश ने ध्यान ही कहाँ दिया आसमान पे । पर जिसने दिया वो चश्मदीद है अंधेरी रात में अंगारों से दहकते रक्ताभ चाँद का ।




    रोजाना की तरह मैं तक़रीबन 8.45 के आस-पास अपने घर की सीढ़ियों पर टहलता हुआ छत पे खुले आसमान के नीचे राहत की साँस की चाह में सुकून के पल बिताने पहुँचा । नीचे तो मानो आग बरस रही थी अब किसे पता था कि धरती की तपिश से चाँद भी लाल हो जायेगा , भाई वाह इश्क़ हो तो ऐसा । वैसे तो मैं आदत से मजबूर अक्सर उत्तर-पूर्व के आसमान को निहारता रहता हूँ पर जैसे ही मेरी नजर दक्षिणपूर्वी कोने पे पड़ी पेड़ की छाया से थोड़ा ही ऊपर चाँद जलते तवे पे पड़े लाल गुड़ के पराठे सा धधक रहा था ,पर इस तपन में भी अखंड ठंडक थी बस नजरें इस दृश्य को देखकर उबलने लगी और मन मस्तिष्क से भी तेज कुछ तलाशने लगा । 
अभी हम इस उधेड़-बुन में ही व्यस्त थे कि अचानक रेड ब्लड मून का ख्याल आया और मेरे छत की जमीन पर टहलते तन्हा कदम एकदम से ठहर गए । क्योंकि ये तो क़यामत की रात थी ,शैतान की रात ,एक ऐसी रात जो नकारात्मक शक्तियों के लिए वरदान की रात होती है । 

   फिर मैं थोड़ी देर तक वहीं बैठा रहा और फिर खाने के लिए बुलावा आने पर वापस सीढ़ियों पर हौले-हौले से सरकता हुआ हाथ धोने के बाद सीधे थाली से जा मिला , आज सब जल्दी ही सो गए मेरे अलावा किसी ने खाना भी नहीं खाया । दिन के बचे दाल-चावल और खीरे के सलाद से मैंने अपनी भूख मिटाई । पर मन अभी भी उसी चाँद पे अटका था । घर के सारे आधुनिक चिराग मेरा मतलब बल्ब अपनी ड्यूटी के बाद विश्राम कर रहे थे पूरा घर अंधेरा था पर खिड़की के बाहर से बिजली के खम्भे पर लटकती दूधिया रौशनी की छँटा खिड़की से छन-छन कर कमरे में मध्यम-मध्यम बिखर रही थी । अगर कोई और रात होती और दिमाग में कोई और बात होती तो शायद मेरा मन शायरी करने बैठ जाता । मगर कुत्ते का भौंकना और हर छोटी आहट पर मेरा चौंकना । खिड़की के इस तरफ बिस्तर से लेकर दीवार तक सबकुछ गर्म था और इस उमस के उस ओर रात बहोत ही ठंडी थी भले चाँद का लहू उबाल मार रहा था । दहशत तो दिमाग की उपज है वरना आसमान में चाँद के लाल होने से धरती को डर कैसा ? 

        पर कुछ किस्से सिर्फ सुनने-सुनाने के लिए नहीं होते अगर धुँआ उठा है वो भी इतना घनघोर फिर आग तो बेशक लगी होगी । मैंने जहाँ तक मेरा सामान्य ज्ञान है और उससे भी थोड़ा आगे मेरी आध्यात्मिक पहुँच जो कि मैं नहीं हमसे है कि दृष्टि से खंगाल कर देखा तो पाया रात भर ये रात इतनी भयावह नहीं थी आधी रात के उस तरफ चाँद और आसमान दोनों साफ होते गए । मगर सोते हुए पूरे गाँव के बीच अकेले जागता हुआ मैं इकलौता गवाह हूँ उन आहटों का जो किसी के भी अंदर भय का समंदर भरने के लिए पर्याप्त थी । 

       क्या आपको भी लगता है कि ये रात बड़ी खौफ़नाक थी या बस ख़ौफ़ की एक रात थी !




🌱SwAsh🌳

@shabdon_ke_ashish ✍️

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