हवा बदलते देर नहीं लगती 🌬️
आलम ये था कि सवेरा होते ही दोपहर हो जाती थी और फिर शाम तक लहर का कहर । आधी रात के बात थोड़ा सुकून जरूर मिलता था मगर आँख लगते ही पता नहीं कब फिर से सूरज चढ़ा होता था क्षितिज में ।
परसो से हवा का रूख बदला और चीखती गरजती पछुआ का स्थान सरसराती सर्द पुरवा ने ले लिया । रफ्ता-रफ्ता धरती की तपती रूह शीतल हो गई और आहिस्ता-आहिस्ता हमारी धधकती साँसें भी ।
अभी हम इस ओह-पोह में ही थे कि मई की गर्मी के बीच ये चादर में लिपटी सुबह कैसे नशीब हो गई तभी पुरवईया पूरब से पैगाम लेकर आई कि कल शाम बरसात हुई थी पूर्वी रियासत के आँगन में । ये बात भी तो सोलह आने सच है कि पश्चिम के लिए राहत हमेशा पूरब से ही आती है । कल रात जब ये सरसराती सर्द हवा किसी अजनबी सुराख से गुजर रही थी तो उस आवाज में तन्हाई का भय भी था और एक संदेश भी मानो कह रही हो चलो पूरब की ओर :-
भीगे हुए मौसम का मजा लूट ले आजा ,
ये नर्म फ़ज़ा , सर्द हवा लूट ले आजा ।
जिन्दगी की भी यही कहानी है कल तक तपिश थी जिन राहों में आज वहाँ पानी है ।
जिन आँखों में आज तलब है , इंतज़ार है कल उनमें यकीनन सुकून बेशुमार होगा । जरूरत है तो बस अपने आप पर कायम रहने की क्योंकि मेरे दोस्त हवा बदलते देर नहीं लगती .....
🌱SwAsh🌳
@shabdon_ke_ashish ✍️
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