कहाँ गया वो पेड़ 🌳


दोपहर का वक़्त था ,सूरज देवता एकदम बीचोबीच विराजमान थे और आसमान से आग बरस रही थी । एक राहगीर धधकती सड़क पर किसी अनजान मंजिल की तलाश में सफर कर रहा था । मंजिल का तो पता नहीं फ़िलहाल नजरों को एक छांव की ललक थी । तभी मानों अरसों की तलब पूरी हो गई और थोड़ी दूर सही पर एक विशालकाय बरगद का वृक्ष दिखाई पड़ा । फिर तो रेंगते कदमों में मानों सुनहरे पंख लग गए । उड़ता हुआ वो पथिक सीधा पेड़ के आगोश में जा गिरा । पसीने से लथपथ अपनी कमीज उतारी और तालाब में बैठी किसी भैंस या फिर नाली में पड़े किसी कुत्ते की तरह हांफने लगा । थोड़ी देर में ही उसने राहत की साँस ली और मंद-मंद पवनों की थपकी ने कब उसे झपकी के हवाले कर दिया पता ही नहीं चला । थका-हारा यायावर थोड़ी ही देर में गहरी नींद में सो गया । पर अचानक से उसका बदन फिर से जलने लगा और आँख खुली तो ना पेड़ था ना छांव ना दूर-दूर तक कोई शहर ना कोई गाँव । बेचैनी में वो उठ खड़ा हुआ और सोचने लगा कि ये एक सपना है या फिर वो कोई ख़्वाब था । कुछ देर तक आसमान निहारने के बाद वो फिर उसी अनजान सफर पर निकल पड़ा जिसकी ना तो कोई मंजिल थी ना ठिकाना ,आख़िर जेठ सी भरी दोपहरी में दिवाकर से आँख मिलाए भी कौन ?

     पर चलते-चलते उसके मन में ये सवाल बार-बार कौंधता रहा कि आख़िर कहाँ गया वो पेड़ 🌳 !

🌱SwAsh🌳 

@shabdon_ke_ashish ✍️ 💚



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