जुगलबंदी इस दुनिया में सभी दौड़ना चाहते है ,सबसे आगे भागना चाहते है ,सच कहूँ तो बिना पंखों के उड़ना चाहते है । मगर !साथ-साथ चलने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है । कभी आगे चले तो पथ प्रदर्शन करे । साथ चले तो हमदर्द और हमसफ़र बने । पीछे चले तो छतरी बने कवच बने । पंछियों का जोड़ा कितना प्यारा लगता है ना । मगर पिंजरे में नहीं उन्मुक्त गगन में उड़ते हुए , पेड़ो की डाल पर चहचहाते हुए ,छत की मुंडेर पर गीत खुशी के गाते हुए । मगर कब तक बस तब तक जमाने की नजर ना लगे जब तक । एक पंछी का जोड़ा बड़ा प्यारा है । उनकी जुगलबंदी अविस्मरणीय है । आपसी समझबूझ तो अद्वितीय । मगर उस नन्ही चिड़ियाँ जो अब थोड़ी बड़ी दिखती है कि एक अलग कहानी थी । वो रहना तो अपने प्रियतम के साथ चाहती है तन-मन से ,मगर उसका सौदा पहले से ही कोई और कर बैठा है मजबूरियों के हाथ । फिर भी उसने अपने मन को रोका नहीं ,ऐसा नहीं कि उसे समाज के लाज-लिहाज का डर नहीं पर ये चारदीवारी उसका सही घर नहीं । वो तो आसमान को भी भेद दे ऐसा उसमें बल है तेज है । उसने पहले तो अपने हाल और हालात को अपने जोड़ीदार से छुपा कर रखा ,घुट-घुट कर सभी जज्बात को दबा कर रखा । फिर भी बच ...