उम्मीद की धूप 🌝
साल का आख़िरी दिन है आधे पहर निकल जाने के बाद मैंने अपने कमरे की पूरब वाली खिड़की से पर्दा और शीशा दोनों अपनी बांई तरफ खिसकाया और देखा कि रात से दिन तक चट्टान सी जमी सर्दी हल्के पीले धूप का रंग लिए मुस्कुरा रही है । चारों तरफ एक खामोशी सी पसरी है मगर दबा दबा सा ही सही कुछ ही घण्टे में कैलेंडर के बदल जाने का शोर वातावरण में भटक रहा है । उजड़ते-बसते , हारते-जीतते , रूठते-मानते , गिरते-संभलते चाहे जैसे भी एक वर्ष और पूरा करने के कगार पर खड़ी है जिन्दगी । मानों कह रही हो अभी और भी बहुत कुछ देखना बाकी है । वैसे इस जाते हुए वर्ष में हमने कुछ ऐसा कारनामा तो किया नहीं जिसकी वजह से खुद को शाबासी दे और यूँ ही बेवजह पीठ थपथपाने की हमें आदत भी नहीं । फिर भी बढ़ती उम्र के खाते में एक साल और तो जमा हो ही गए । उम्मीद तो बहुत थी जो बीतते दिनों के साथ धूमिल होती गई । मगर सब खत्म होकर भी कुछ तो बाकी है और यही तो है जिन्दगी । ज़माने की अंधाधुंध धुंध के बीच उम्मीद की धूप सच कहूँ तो जीवन का प्रतिरूप । @shabdon_ke_ashish ✍️